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यह काफ़ी दु:खद है – एंजेलो मैथ्यूज़ ने श्रीलंका के लिए और टेस्ट मैचों की रखी मांग

एंजेलो मैथ्यूज़ टेस्ट मैचों की संख्या बढ़ाने की मांग करते हुए

अलविदा से पहले एक आवाज़ — मैथ्यूज़ ने उठाई टेस्ट क्रिकेट में समानता की मांग

गॉल में जब एंजेलो मैथ्यूज़ अपना आखिरी टेस्ट खेलने उतरे, तो यह सिर्फ़ एक खिलाड़ी का विदाई मैच नहीं था, बल्कि यह एक कुशल योद्धा की आखिरी पुकार थी — एक ऐसी पुकार जो अब क्रिकेट की सत्ता के केंद्रों तक गूंज रही है। मैथ्यूज़ ने अपने करियर के अंत से पहले एक ऐसी बात कही है, जो हर क्रिकेट प्रेमी और खासकर छोटे क्रिकेट राष्ट्रों को गहराई से झकझोरती है। उन्होंने भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के मुकाबले अन्य देशों को भी बराबर अवसर देने की अपील की है — क्योंकि “टेस्ट क्रिकेट सबका है, किसी एक का नहीं।”


“साल में चार टेस्ट… क्या यह न्याय है?” — श्रीलंका की अनदेखी से खिन्न मैथ्यूज़

2025 में श्रीलंका सिर्फ़ चार टेस्ट मैच खेलेगा — जो कि 2013 के बाद से एक कैलेंडर वर्ष में उनका सबसे कम टेस्ट शेड्यूल है। मैथ्यूज़ इस अंतर को सिर्फ़ आंकड़ों में नहीं, बल्कि युवाओं के सपनों और अपने देश के क्रिकेट भविष्य में महसूस करते हैं। उन्होंने कहा, “युवा टेस्ट खेलना चाहते हैं, क्योंकि यही क्रिकेट का शिखर है। हमें टेस्ट मैचों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।”

उनका यह कहना — “अगर भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड साल में 15 टेस्ट खेल सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?” — सिर्फ़ सवाल नहीं है, यह क्रिकेट की गहराईयों से निकली एक पुकार है कि खेल में सभी को बराबरी का मंच मिलना चाहिए।


118 टेस्ट के योद्धा का सवाल — और कितने खिलाड़ियों को मिलेगा ये मौक़ा?

एंजेलो मैथ्यूज़ के शब्दों में सिर्फ़ शिकायत नहीं है, एक पीढ़ी की झलक है। उन्होंने जब यह कहा कि “आख़िर और कितने श्रीलंकाई खिलाड़ियों को 100 टेस्ट खेलने का मौका मिलेगा?” तो वह दरअसल क्रिकेट ढांचे की उस खामोश असमानता को उजागर कर रहे थे, जिसकी अक्सर अनदेखी की जाती है। ये सिर्फ़ एक आंकड़ा नहीं, वो सपना है जो कई क्रिकेटरों के लिए कभी हकीकत नहीं बन पाएगा — सिर्फ़ इसलिए कि उन्हें पर्याप्त टेस्ट खेलने का मौक़ा ही नहीं मिलता।


“मुझे गॉल में ही अलविदा कहना था…” लेकिन इसकी एक और वजह थी

मैथ्यूज़ ने अपने रिटायरमेंट का समय भी श्रीलंका के टेस्ट कार्यक्रम की कमी के आधार पर तय किया। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें अगले टेस्ट के लिए साल भर इंतज़ार करना पड़े, तो बेहतर होगा कि वो अब ही विदाई लें और किसी युवा को वो जगह दें जो अगले साल तक टीम में जगह बना सके। ये फैसला किसी थकन से नहीं, जिम्मेदारी और दूरदृष्टि से लिया गया निर्णय था। उन्होंने कहा, “मैंने सोचा कि अगले टेस्ट से पहले बहुत लंबा गैप है। किसी और को वह मौका मिलना चाहिए।”


एक और खिलाड़ी की पुकार या पूरे क्रिकेट जगत का आईना?

धनंजय डी सिल्वा जैसे कप्तान पहले ही इस मुद्दे पर बोल चुके हैं, लेकिन एंजेलो मैथ्यूज़ की आवाज़ में अनुभव और भावनाओं का मेल है। यह सिर्फ़ उनके लिए नहीं, हर उस क्रिकेटिंग नेशन के लिए है जो लगातार टेस्ट से दूर होता जा रहा है। और सवाल यह नहीं कि कौन कितने टेस्ट खेल रहा है, सवाल यह है कि क्या “टेस्ट क्रिकेट सिर्फ़ कुछ देशों की जागीर बनकर रह जाएगी?”


📌 निष्कर्ष

एंजेलो मैथ्यूज़ का संन्यास जितना व्यक्तिगत है, उतना ही क्रिकेट की नीतियों पर एक सार्वजनिक सवाल भी। टेस्ट क्रिकेट को बचाने की बात हर कोई करता है, लेकिन अगर यह संरक्षण केवल बड़े देशों तक सीमित रहा, तो यह खेल अपनी आत्मा खो देगा। मैथ्यूज़ ने सिर्फ़ बल्ला नहीं रखा, उन्होंने जाते-जाते टेस्ट क्रिकेट के लिए एक मजबूत आवाज़ छोड़ दी है — एक ऐसी आवाज़, जिसे नजरअंदाज करना इस खेल के लिए खतरनाक होगा।

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